Goat Farming दो मंजिला मकान के इस मॉडल में बकरी की मेंगनी सीधे मिट्टी के संपर्क में नहीं आती है. जिससे मेंगनी पर मिट्टी नहीं लगती है और उसकी खाद बनाने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है. और इस तरह से मेंगनी के अच्छे दाम भी मिल जाते हैं.
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Goat Farming बरसात के मौसम में जलभराव इंसान ही नहीं पशुओं को भी परेशान करता है. अगर पशुओं के बाड़े में थोड़ा सा भी पानी भर जाए तो उन्हें पूरी रात खड़े-खड़े गुजारनी पड़ती है. पानी जमा होने से बाड़े में बीमारी फैलने का खतरा भी बना रहता है. बारिश के मौसम में डायरिया, खुरपका-मुंहपका और पेट के कीड़ों जैसी तमाम बीमारी होने का खतरा बना रहता है. बकरियों Goat Farming को इन्हीं सब परेशानियों से बचाने के लिए बाजार में उनके लिए प्लाास्टिक के रेडीमेड मकान मिल रहे हैं. ये दो मंजिला मकान हैं. पहली मंजिल पर बड़ी बकरियोंको रखने के साथ ही दूसरी मंजिल पर बकरियों के छोटे बच्चों को रखा जा सकता है.
इतना ही नहीं कम जगह होने पर बकरी पालन Goat Farming के लिए भी रेडीमेड मकान बहुत ही कारगर हैं. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने बकरी पालन में जगह की कमी को दूर करने के लिए ये दो मंजिला मकान बनाया है. एक बार बनाने के बाद 18 से 20 साल तक यह मकान चल जाते हैं.
बकरियों के लिए बनने वाले प्लास्टिक के इस दो मंजिला मकान में ऊपरी मंजिल की मेंगनी और बच्चों का यूरिन नीचे बड़ी बकरियों पर न गिरे इसके लिए बीच में प्लास्टिाक की एक शीट लगाई जाती है. शीट की इस छत का ढलान इस तरह से दिया जाता है कि यूरिन और मेंगनी मकान के किनारे की ओर गिरती हैं.
जमीन के संपर्क से छोटे बच्चों को जल्दी लगती हैं बीमारियां
सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कुमार ने किसान तक को बताया कि बेशक दो मंजिला मकान से जगह की कमी और बचत होती है. Goat Farming लेकिन इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि बकरी के बच्चे बीमारियों से बच जाते हैं. वो बीमारियां जिन पर अच्छी खासी रकम खर्च हो जाती है. इस तरह के मकान में नीचे बड़ी बकरियां रखी जाती हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर छोटे बच्चे रखे जाते हैं. ऊपरी मंजिल पर रहने के चलते बच्चे मिट्टी के संपर्क में नहीं आ पाते हैं तो इससे वो मिट्टी खाने से बच जाते हैं. वर्ना छोटे बच्चे मिट्टी खाते हैं तो इससे उनके पेट में कीड़े हो जाते हैं.
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चारा गंदा नहीं होता है तो बच जाते हैं बीमारियों से Goat Farming
डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि रेडीमेड मकान का दूसरा पहलू यह भी है कि बकरियों के शेड में बहुत सारा चारा जमीन पर गिर जाता है. जिसके चलते चारे पर बकरी का यूरिन और मेंगनी (मैन्योर) भी लग जाता है. बकरी या उनके बच्चे जब इस चारे को खाते हैं तो इससे भी वो बीमार पड़ जाते हैं. इतना ही नहीं अगर जमीन कच्ची नहीं है तो यूरिन से उठने वाली गैस से भी बकरी और उनके बच्चे बीमार पड़ जाते हैं.
1.80 लाख रुपये में तैयार होता है दो मंजिला मकान
डॉ. अरविंद कुमार का कहना है कि एक बड़ी बकरी को डेढ़ स्वाकायर मीटर जगह की जरूरत होती है. हमने दो मंजिला मकान का जो मॉडल बनाया है वो 10 मीटर चौड़ा और 15 मीटर लम्बा है. इस मॉडल मकान में नीचे 10 से 12 बड़ी बकरी रख सकते हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर 17 से 18 बकरी के बच्चों को बड़ी ही आसानी से रख सकते हैं. और इस साइज के मकान की लागत 1.80 लाख रुपये आती है. Goat Farming इस मकान को बनाने में इस्तेमाल होने वाली लोहे की एंगिल और प्लास्टिक की शीट बाजार में आसानी से मिल जाती है. रहा सवाल ऊपरी मंजिल पर बनाए गए फर्श का तो कई कंपनियां इस तरह का फर्श बना रही हैं और आनलाइन मिल भी रहा है.
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