UGC Assistant Professor Eligibility यूजीसी ने सहायक प्रोफेसरों की एलिजिबिलिटी में तीन दशक में छह बार किया बदलाव. यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन की ओर से असिस्टेंट प्रोफेसर की पात्रता में भले ही पीएचडी की अनिवार्यता हटा दी गई हो, सहायक आचार्यों के लिए होने वाली भर्तियों में फायदा पीएचडी करने वालों को ही मिलेगा।
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पीएचडी कर चुके उम्मीदवारों को फायदा
दरअसल, असिस्टेंट प्रोफेसर UGC Assistant Professor Eligibility की भर्ती में एकेडमिक परफॉर्मेंस इंडेक्स अहम भूमिका निभाता है। इस इंडेक्स में पीएचडी होल्डर्स को 30, नेट क्वालिफाइड को पांच और नेट जेआरएफ की पात्रता रखने वाले उम्मीदवारको सात अंक दिए जाते हैं। फाइनल अंकों के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर्स का चयन किया जाता है। नए नियम के मुताबिक असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में नेट और सेट अनिवार्य कर दिया गया है, लेकिन पीएचडी को भी नजरअंदाज नहीं किया गया है। ऐसे में भर्ती में सीधा फायदा पीएचडी कर चुके उम्मीदवारों को ही मिलेगा।
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उधर, यूजीसी ने वर्ष 1990 से 2023 के बीच विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों में सहायक प्रोफेसरों की एलिजिबिलिटी में छह बार बदलाव किया है। लगभग हर पांच सालपर न्यूनतम पात्रता में परिवर्तन किया जाता रहा है। यानी असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति की न्यूनतम अर्हता में समय-समय पर बदलाव किया जाता रहा है।
गौरतलब है कि सहायक प्रोफेसर पद UGC Assistant Professor Eligibility के लिए वर्ष 1991 में पहली बार नेट अनिवार्य किया गया। इससे पहले 1986 के नियमों में नेट या सेट या एमफिल या पीएचडी की अनिवार्यता नहीं थी। 1991 के प्रावधान को 1995 में बदल दिया गया। नई व्यवस्था में उन युवाओं को भी मौका दिया गया, जिनके पास एमफिल की योग्यता थी या जो दिसंबर 1993 तक पीएचडी थी सिस जमा कर चुके थे, उन्हें योग्य मान लिया गया। एआईएसएचई 2020-21 के आंकड़े के अनुसार राजस्थान में कुल 12 हजार 967 स्टूडेंट्स एनरोल हुए थे। इनमेंसे मेल अभ्यर्थी 6588 और फिमेल अभ्यर्थी 6379 ने परीक्षा दी।
पीएचडी की अनिवार्यता खत्म, वैकल्पिक योग्यता में शामिल UGC Assistant Professor Eligibility
कोविड-19 के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने घोषणा की थी कि 1 जुलाई 2021 से सभी विवि में पीएचडी के आधार पर ही नियुक्ति होगी। हालांकि इस नियम के लागू होने के पहले ही यूजीसी ने नया नियम जारी कर दिया। इसमें कहा गया कि असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए नेट या सेट जरूरी है। इसमें वर्ष 2018 के रेगुलेशन में केवल इतना ही बदलाव किया गया कि पीएचडी की अनिवार्यता खत्म करके उसे पूर्व की भांति वैकल्पिक योग्यता में शामिल किया गया है।
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